मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत एक्स्ट्रा-जूडिशियल तलाक की मान्यता: अंजुम नय्यर बनाम यावर एहसान (MAT.APP.(F.C.) 37/2023) का केस विश्लेषण



मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत एक्स्ट्रा-जूडिशियल तलाक की मान्यता: अंजुम नय्यर बनाम यावर एहसान (MAT.APP.(F.C.) 37/2023) का केस विश्लेषण

निर्णय की तारीख: 7 नवंबर 2024
न्यायालय: दिल्ली उच्च न्यायालय, नई दिल्ली
न्यायाधीश: माननीय न्यायमूर्ति रेखा पाली और माननीय न्यायमूर्ति सौरभ बनर्जी

हाल ही में अंजुम नय्यर बनाम यावर एहसान मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत एक्स्ट्रा-जूडिशियल तलाक को मान्यता देने और इसे कानूनी तौर पर मान्य बनाने के महत्वपूर्ण पहलुओं पर स्पष्टता प्रदान की है। यह केस, MAT.APP.(F.C.) 37/2023, मुबारात (आपसी सहमति से तलाक) की वैधता और फैमिली कोर्ट की जिम्मेदारियों को स्पष्ट करता है। आइए इस फैसले के मुख्य बिंदुओं और इसके प्रभावों का विश्लेषण करें।


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पृष्ठभूमि और मुख्य तथ्य

अंजुम नय्यर और यावर एहसान के बीच विवाह 10 जुलाई 1997 को मुस्लिम रीति-रिवाजों के अनुसार जामिया नगर, नई दिल्ली में संपन्न हुआ। दोनों के दो बेटियां भी हैं। हालांकि, स्वभावगत मतभेदों के कारण 2016 में वे अलग रहने लगे।

मध्यस्थता असफल होने के बाद, 24 जनवरी 2020 को प्रतिवादी ने तलाक का उच्चारण किया और दोनों ने मुबारात समझौते पर हस्ताक्षर किए ताकि उनके विवाह को आपसी सहमति से समाप्त किया जा सके। लेकिन इस तलाक का कोई औपचारिक रिकॉर्ड नहीं था। इस संबंध में उन्होंने फैमिली कोर्ट्स एक्ट, 1984 की धारा 7 के तहत फैमिली कोर्ट में विवाह के विघटन की घोषणा के लिए संयुक्त याचिका दायर की।

हालांकि, फैमिली कोर्ट ने उनकी याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह वर्तमान रूप में सुनवाई योग्य नहीं है। इसके बाद, याचिकाकर्ता ने दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील की, जिसमें 24 जनवरी 2020 से उनकी शादी को भंग मानने की औपचारिक घोषणा की मांग की गई।


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न्यायालय द्वारा विचारित कानूनी मुद्दे

दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैमिली कोर्ट द्वारा तलाक की घोषणा देने से इनकार करने की समीक्षा की और यह जांच की कि क्या मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत मुबारात जैसे एक्स्ट्रा-जूडिशियल तलाक को फैमिली कोर्ट द्वारा मान्यता दी जानी चाहिए।

निम्नलिखित कानूनी सिद्धांतों और अधिनियमों पर विचार किया गया:

1. मुस्लिम व्यक्तिगत कानून (शरीयत) अधिनियम, 1937


2. मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939


3. फैमिली कोर्ट्स एक्ट, 1984



अदालत ने फैमिली कोर्ट्स एक्ट की धारा 7(1) के तहत, विशेष रूप से 7(b) और 7(d) धाराओं का संदर्भ दिया, जो फैमिली कोर्ट को विवाह की वैधता और व्यक्ति की वैवाहिक स्थिति पर निर्णय देने का अधिकार प्रदान करती हैं।


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न्यायालय की टिप्पणियां और निर्णय

1. मुबारात को वैध तलाक के रूप में मान्यता
अदालत ने जोर दिया कि मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत, आपसी सहमति से तलाक (मुबारात) विवाह को समाप्त करने का एक स्वीकृत तरीका है। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के शायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2017) के मामले का भी उल्लेख किया, जिसमें मुबारात को मुस्लिम कानून के तहत तलाक के विभिन्न तरीकों में मान्यता दी गई थी।

2. एक्स्ट्रा-जूडिशियल तलाक के लिए सार्वजनिक घोषणा का महत्व
हालांकि मुबारात एक निजी समझौता है, कुछ मामलों में पक्षकार इसे आधिकारिक रूप से दर्ज कराना चाह सकते हैं। फैमिली कोर्ट को फैमिली कोर्ट्स एक्ट की धारा 7 के तहत घोषणा देने का अधिकार है, जिससे विवाह की समाप्ति को सार्वजनिक रिकॉर्ड में दर्ज किया जा सकता है।

3. फैमिली कोर्ट्स के लिए प्रक्रियात्मक आवश्यकताएं
दिल्ली उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मुबारात या अन्य एक्स्ट्रा-जूडिशियल तलाक के मामलों में, फैमिली कोर्ट को केवल सहमति की पुष्टि के लिए एक साधारण सत्यापन प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। यदि मुबारात समझौता प्रस्तुत और मान्य है, तो औपचारिक घोषणा जारी की जानी चाहिए ताकि अनावश्यक प्रक्रियात्मक देरी से बचा जा सके।


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न्यायालय द्वारा जारी किए गए मुख्य दिशा-निर्देश

दिल्ली उच्च न्यायालय ने भविष्य में एक्स्ट्रा-जूडिशियल तलाक के मामलों में फैमिली कोर्ट्स के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश दिए:

1. बयान दर्ज करना: फैमिली कोर्ट को प्रतिवादी को नोटिस जारी कर दोनों पक्षों के बयान दर्ज करने चाहिए।


2. मूल समझौते का उत्पादन: कोर्ट को मुबारात समझौते या समकक्ष दस्तावेज की प्रामाणिकता की पुष्टि करनी चाहिए, जिसके बाद इस समझौते के आधार पर विवाह को समाप्त घोषित करना चाहिए।



इन दिशा-निर्देशों का उद्देश्य उन जोड़ों के लिए प्रक्रिया को सरल बनाना है जो एक्स्ट्रा-जूडिशियल तलाक की घोषणा प्राप्त करना चाहते हैं, ताकि फैमिली कोर्ट्स मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत मान्य समझौतों को मान्यता दे सकें।


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निष्कर्ष और प्रभाव

MAT.APP.(F.C.) 37/2023 में आया निर्णय मुस्लिम जोड़ों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल है जो मुबारात या अन्य प्रकार के एक्स्ट्रा-जूडिशियल तलाक के माध्यम से विवाह को समाप्त करना चाहते हैं। यह निर्णय यह स्थापित करता है कि फैमिली कोर्ट, यदि सहमति स्पष्ट और ठीक से दस्तावेजित हो, तो गहन जांच के बिना विवाह को भंग घोषित करने का अधिकार रखता है।

यह मामला मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के तहत एक्स्ट्रा-जूडिशियल तलाक को सार्वजनिक रूप से दर्ज करने की प्रक्रिया को अधिक स्पष्ट बनाता है, जिससे धार्मिक प्रथाओं के प्रति कानूनी प्रणाली में अधिक सम्मान और सरलता की उम्मीद की जा सकती है।


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कानूनी सलाह के लिए संपर्क करें:
जावेद महमूद अली
मुस्लिम विवाह और तलाक कानून के विशेषज्ञ
मोबाइल: 9289925377
ईमेल: courtmarriagelawyerjavedmahmoo@gmail.com
https://advocatejaved.in



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